चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) लंबे समय से चीन की Belt and Road Initiative (BRI) का सबसे अहम हिस्सा माना जाता रहा है। यह प्रोजेक्ट बीजिंग और इस्लामाबाद की गहरी रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक था। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं।

हाल ही में पाकिस्तान ने चीन से रेल प्रोजेक्ट के लिए लोन लेने की कोशिश छोड़ दी और अब उसने एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) की ओर रुख कर लिया है। यह कदम सिर्फ फाइनेंसिंग बदलने का मामला नहीं, बल्कि एक बड़ा रणनीतिक मोड़ है, जिसके दूरगामी असर होंगे।

क्या हुआ?

CPEC का सबसे अहम हिस्सा ML-1 रेलवे प्रोजेक्ट है, जिसकी लागत करीब 6 अरब डॉलर है। पाकिस्तान लंबे समय से चीन से इसके लिए फंड जुटाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कर्ज चुकाने की क्षमता न होने और आर्थिक संकट के चलते यह बातचीत ठप हो गई।

अब अमेरिका और जापान के प्रभाव वाले ADB ने आगे आकर इस प्रोजेक्ट के एक हिस्से (लगभग 2 अरब डॉलर) को फंड करने की तैयारी कर ली है।

क्यों है यह बड़ा बदलाव?

ओपन बिडिंग की शुरुआत: CPEC प्रोजेक्ट्स में अब तक कॉन्ट्रैक्ट सिर्फ चीनी कंपनियों को मिलते थे। लेकिन ADB के आने से अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओपन बिडिंग होगी, जिससे पश्चिमी कंपनियों को भी पाकिस्तान में बड़ा मौका मिलेगा।

रणनीतिक समीकरण बदल रहे हैं: हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में नई गर्माहट आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति और पाकिस्तानी सेना प्रमुख की "अभूतपूर्व" मुलाकात इसका संकेत है।

चीन का घटता दबदबा: अमेरिका अब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और खनिज क्षेत्र (जैसे Reko Diq कॉपर-गोल्ड माइन) में दखल बढ़ा रहा है। यह सीधे-सीधे चीन के लिए चुनौती है।

चीन पीछे क्यों हटा?

  • पाकिस्तान का बढ़ता कर्ज और भुगतान न कर पाने की स्थिति
  • चीन के कर्मचारियों और प्रोजेक्ट्स पर बढ़ते हमले
  • BRI प्रोजेक्ट्स से चीन को हो रहे आर्थिक नुकसान
  • पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और बार-बार बदलती नीतियाँ

पाकिस्तान के लिए आगे की राह

पाकिस्तान अब अमेरिका और चीन के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है। ADB का लोन उसकी रेल परियोजना को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, लेकिन इससे चीन नाराज़ हो सकता है।

आने वाले समय में इस्लामाबाद के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह दोनों महाशक्तियों के बीच अपनी स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी (रणनीतिक स्वतंत्रता) को कैसे बनाए रखे।