अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर वैश्विक ऊर्जा नीति पर बहस को तेज कर दिया है। उनका आरोप है कि यूरोपीय संघ (EU) और नाटो देश अब भी रूस से तेल और गैस खरीद रहे हैं, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था और युद्ध मशीन दोनों को सहारा मिल रहा है। ट्रम्प ने समाधान के तौर पर एक विवादित प्रस्ताव भी रखा है—चीन और भारत जैसे देशों पर 50–100% तक का भारी शुल्क (tariffs) लगाना, जो रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं।
यह बयानबाजी आक्रामक है, लेकिन इसके पीछे छुपा सच यह है कि ऊर्जा और राजनीति एक-दूसरे से कितने गहरे जुड़े हुए हैं। आइए समझते हैं कि इस पूरे मसले की असल जटिलताएँ क्या हैं।
यूरोप की मौजूदा स्थिति: प्रतिबंधों की हकीकत
ट्रम्प का आरोप है कि यूरोप रूस पर सख्ती नहीं कर रहा, लेकिन तस्वीर इतनी सीधी नहीं है।
तेल प्रतिबंध: 2022 से ही यूरोपीय संघ ने रूसी समुद्री तेल (seaborne crude) पर बड़ा प्रतिबंध लगा दिया है।
पाइपलाइन छूट: हंगरी और स्लोवाकिया जैसे स्थल-रुद्ध (landlocked) देश अब भी Druzhba Pipeline के जरिए रूसी तेल आयात कर रहे हैं। इनके पास विकल्प सीमित हैं और अचानक आपूर्ति रोकने पर इनके लिए आर्थिक संकट खड़ा हो सकता है।
तुर्की की भूमिका: तुर्की, जो नाटो का अहम सदस्य है लेकिन EU का हिस्सा नहीं, अब भी रूसी समुद्री तेल का बड़ा खरीदार है। इससे पश्चिमी देशों में कूटनीतिक खींचतान बनी हुई है।
व्यावहारिक चुनौतियाँ और आर्थिक असर
रूसी ऊर्जा को पूरी तरह से काट देना आसान नहीं है।
ऊर्जा सुरक्षा: हंगरी और स्लोवाकिया जैसे देशों में आपूर्ति रुकने से ईंधन की भारी कमी और दामों में उछाल आ सकता है।
आर्थिक दबाव: वैश्विक तेल बाजार पर अचानक रोक से तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिससे महंगाई और आर्थिक संकट का खतरा बढ़ेगा।
गठबंधन की एकता: नाटो और EU के बीच राजनीतिक दरारें पैदा हो सकती हैं, खासकर तब जब कुछ सदस्य देशों को लगे कि उनके राष्ट्रीय हितों की अनदेखी हो रही है।
चीन और भारत का रुख: दोनों देश रूसी तेल पर भारी निर्भर हैं। ट्रम्प द्वारा सुझाए गए शुल्क न केवल WTO नियमों का उल्लंघन होंगे, बल्कि इनके जवाब में चीन और भारत कड़े कदम भी उठा सकते हैं।
आगे की संभावित स्थितियाँ
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह टकराव तीन अलग-अलग रास्तों पर जा सकता है:
1. समन्वित सख्ती (कम संभावना, लेकिन बड़ा असर)
- नाटो और EU पूरी तरह से रूसी ऊर्जा बंद कर दें।
- G7 देश भारी शुल्क लागू करें।
- रूस की आय पर गहरा असर पड़ेगा, लेकिन तेल की कीमतें इतना बढ़ जाएँगी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा।
2. आंशिक सफलता (सबसे संभावित)
- EU धीरे-धीरे कुछ छूट खत्म करे।
- अमेरिका सीमित दायरे में शुल्क लगाए।
- राजनीतिक तनाव बढ़ेगा लेकिन पूर्ण टकराव टलेगा।
3. ट्रेड वॉर और विघटन (खतरनाक रास्ता)
- भारी शुल्क से व्यापार युद्ध छिड़े।
- नाटो और EU की एकता कमजोर हो।
- रूस और अधिक मजबूती से एशिया की ओर ऊर्जा निर्यात बढ़ाए और पश्चिमी दबाव से बच निकले।
निष्कर्ष
ट्रम्प की आक्रामक बयानबाजी और शुल्क की धमकियाँ यूरोप और नाटो को रूसी ऊर्जा से पूरी तरह अलग करने का दबाव बनाने के लिए हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि रूसी तेल पर पूरी और तुरंत रोक लगभग असंभव है। वैश्विक ऊर्जा बाज़ार आपस में इतना जुड़ा हुआ है कि अचानक बदलाव से भारी आर्थिक नुकसान होगा।
सबसे संभावित नतीजा यही दिखता है कि अमेरिका दबाव बनाए रखेगा, EU धीरे-धीरे कदम उठाएगा, और इस बीच राजनीतिक खींचतान जारी रहेगी।
👉 यह टकराव केवल ऊर्जा का नहीं बल्कि भू-राजनीतिक शक्ति संतुलन का है। आने वाले सालों में यह तय करेगा कि वैश्विक राजनीति का केंद्र किस ओर झुकेगा—पश्चिम की ओर या एशिया की ओर।

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