भारत सितंबर 2025 में रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चा तेल आयात करने जा रहा है। यह उसकी कुल ज़रूरतों का लगभग 40% होगा। दिलचस्प बात यह है कि यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब अमेरिका ने 27 अगस्त 2025 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एलान के बाद भारत के अधिकांश निर्यात पर 50% टैरिफ लगा दिया है।

अमेरिका का मकसद साफ है—भारत पर दबाव डालना ताकि वह रूस से तेल की खरीद घटाए। लेकिन भारत इसके बावजूद रूस से तेल खरीद पर दांव क्यों लगा रहा है? आइए समझते हैं।

💰 भारत को मिलने वाला आर्थिक फायदा

2022 से अब तक भारत ने रूस से सस्ता तेल लेकर करीब 17 अरब डॉलर बचाए हैं। रूसी तेल मध्य पूर्व की तुलना में 8–10 डॉलर प्रति बैरल सस्ता मिलता है। यह बचत न सिर्फ वैश्विक तेल कीमतों की मार झेलने में मदद करती है, बल्कि घरेलू महंगाई को भी नियंत्रित रखती है।

🔑 ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता

भारत अपनी 85% कच्चे तेल की ज़रूरतें आयात करता है। ऐसे में सस्ता और विविध स्रोतों से तेल खरीदना उसकी मजबूरी भी है और रणनीति भी।

ONGC चेयरमैन अरुण कुमार सिंह के अनुसार, “भारत तब तक रूसी तेल खरीदेगा जब तक यह आर्थिक रूप से फायदेमंद रहेगा।”

भारत मानता है कि उसकी विदेश नीति पर किसी का “डिक्टेशन” नहीं चलेगा, खासकर तब जब पश्चिमी देश खुद रूस से यूरेनियम और खाद जैसे संसाधन ले रहे हैं।

📉 अमेरिका-भारत रिश्तों पर असर

टैरिफ से भारत का अमेरिका को निर्यात $35–40 अरब तक घट सकता है। रक्षा और तकनीक साझेदारी भी प्रभावित हो सकती है। यह स्थिति 1998 के अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सबसे बड़ा झटका मानी जा रही है।

🇮🇳 भारत की काउंटर स्ट्रैटेजी

अमेरिकी दबाव का सामना करने के लिए भारत ये कदम उठा रहा है:

टैक्स नीतियों को सरल बनाना और इनकम टैक्स राहत देकर घरेलू मांग बढ़ाना।

EU, ASEAN, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे नए बाजारों में निर्यात बढ़ाना।

रूस के साथ रुपया–रूबल व्यापार कर विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम करना।

🌐 वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

यह घटनाक्रम दुनिया को दो बड़े ब्लॉक्स में बांटता दिख रहा है:

अमेरिका-नेतृत्व वाला पश्चिमी ब्लॉक

रूस-चीन-भारत ऊर्जा कॉरिडोर

अगर भारत-रूस के बीच दीर्घकालिक तेल अनुबंध और डॉलर से हटकर व्यापार और बढ़ता है, तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नई दिशा तय कर सकता है।

📌 निष्कर्ष

भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता है, भले ही इसके लिए उसे अमेरिका जैसे बड़े बाजार से टकराव क्यों न सहना पड़े। आने वाले समय में यह फैसला वैश्विक व्यापार संतुलन को हमेशा के लिए बदल सकता है।

👉 आप क्या सोचते हैं? क्या भारत का यह कदम सही रणनीति है या उसे अमेरिका के साथ टकराव से बचना चाहिए? अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं।