टेस्ला (Tesla), दुनिया की सबसे चर्चित ईवी (EV) कंपनी, ने आखिरकार भारत में औपचारिक एंट्री कर ली है। जुलाई 2025 में मुंबई में पहले शोरूम की शुरुआत के साथ Model Y (RWD और Long-Range AWD) लॉन्च हुई। लेकिन शुरुआती रिस्पॉन्स ने कंपनी को एक "रियलिटी चेक" दिया है।

बुकिंग्स और नंबर

लॉन्च के बाद से सिर्फ़ करीब 600 बुकिंग्स हुई हैं। पहले 2,500 कारें भेजने का प्लान था, लेकिन अब टेस्ला सिर्फ़ 350-500 गाड़ियों तक ही सीमित हो रही है।

कीमत और टैक्स की दीवार

भारत में टेस्ला की सबसे बड़ी चुनौती है इसकी कीमत

Model Y की शुरुआती कीमत है ₹59.89 लाख, जो अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग दोगुनी है।

वजह है भारत में 110% तक का आयात शुल्क (CBU cars पर)।

सरकार ने नई EV पॉलिसी में 15% ड्यूटी का ऑप्शन दिया है, लेकिन इसके लिए कंपनियों को ₹4,150 करोड़ का निवेश और लोकल मैन्युफैक्चरिंग करनी होगी। टेस्ला अभी इस स्कीम का हिस्सा नहीं बनी है।

इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिमांड की कमी

कीमत के अलावा दो और बड़ी चुनौतियाँ हैं:

1. चार्जिंग नेटवर्क और सर्विस सेंटर की कमी – टेस्ला की ताकत उसका सुपरचार्जर नेटवर्क है, जो भारत में लगभग न के बराबर है। सिर्फ़ मेट्रो शहरों (मुंबई, दिल्ली, पुणे, गुरुग्राम) तक ही डिलीवरी सीमित है।

2. कमज़ोर डिमांड – भारत में ₹60-70 लाख की कारों का मार्केट बहुत छोटा है। अभी EV बिक्री कुल कारों का सिर्फ़ 4% है और उसमें भी ज़्यादातर दो और तीन-पहिया गाड़ियाँ शामिल हैं।

भारतीय कंपनियों का बढ़त

टेस्ला को टक्कर मिल रही है स्थानीय दिग्गजों से:

टाटा, महिंद्रा, हुंडई जैसी कंपनियाँ लोकल प्रोडक्शन करती हैं।

उनकी कारें सस्ती हैं और भारतीय ज़रूरतों के हिसाब से डिज़ाइन होती हैं।

उनके पास सर्विस नेटवर्क और सरकारी पॉलिसी का सपोर्ट भी है।

जैसा कि JSW के सज्जन जिंदल ने कहा था – “Tesla वो नहीं कर सकती जो Tata और Mahindra कर सकते हैं।”

टेस्ला के पास क्या विकल्प हैं?

1. लोकल मैन्युफैक्चरिंग में निवेश – ₹4,150 करोड़ लगाकर फैक्ट्री खोलना और कम टैक्स का फायदा लेना।

2. प्रीमियम इंपोर्टर स्ट्रेटेजी – हर साल कुछ सौ गाड़ियाँ बेचकर हाई-मार्जिन पर टिके रहना।

3. पार्टनरशिप या CKD असेंबली – किसी भारतीय कंपनी के साथ मिलकर लोकल असेंबली करना।

आगे क्या देखना होगा?

2025 के बाकी महीनों में नज़रें इन बातों पर होंगी:

पहली ~500 कारों की डिलीवरी कितनी स्मूद रहती है।

GST काउंसिल की नई EV टैक्स नीतियाँ।

टाटा, महिंद्रा और VinFast जैसी कंपनियों के नए लॉन्च और प्राइसिंग।

नतीजा

भारत में टेस्ला को सिर्फ़ ग्लोबल ब्रांड वैल्यू पर भरोसा नहीं करना चाहिए। अगर वो लोकल प्रोडक्शन या टैक्स रिलीफ हासिल नहीं करती, तो वो एक निच लक्ज़री ब्रांड बनकर रह जाएगी। भारत जैसे बड़े मार्केट में मास-मार्केट प्लेयर बनने के लिए असली चुनौती अभी बाकी है।