अगस्त 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर बड़ा आर्थिक हमला करते हुए भारतीय सामानों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। अब कुछ प्रमुख निर्यातों पर कुल शुल्क 50% तक पहुँच चुका है। इसका कारण उन्होंने भारत के "रूस के साथ नज़दीकी रिश्तों" को बताया — खासकर सस्ते रूसी तेल और रक्षा सौदों की वजह से। यह फैसला बीते कई दशकों में भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों पर सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर तगड़ा असर
50% तक शुल्क बढ़ने से भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाज़ार में महंगे हो गए हैं। इससे भारतीय निर्यातक संकट में हैं और खासकर टेक्सटाइल, लेदर और ज्वेलरी जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों पर रोजगार संकट मंडरा रहा है। तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हज़ारों नौकरियों पर खतरा है। भारत सरकार ने निर्यातकों के लिए राहत पैकेज की तैयारी शुरू कर दी है और विदेश मंत्रालय ने इन टैरिफ़ को "अनुचित और अन्यायपूर्ण" बताया है।
आईटी सेक्टर: भारत की "गोल्डन गूज़"
भारत का आईटी उद्योग जिसकी कीमत $245 अरब डॉलर से अधिक है, फिलहाल सीधे टैरिफ़ की मार से बचा हुआ है। अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय आईटी सेक्टर से लगभग 60% सेवाएँ लेती हैं। टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियाँ क्लाउड मैनेजमेंट, साइबर सिक्योरिटी और एआई एनालिटिक्स जैसी सेवाएँ देती हैं। यही कारण है कि आईटी सेक्टर को भारत की “क्राउन ज्वेल” कहा जाता है।
लेकिन मौजूदा तनाव का असर यहाँ भी दिख रहा है। अमेरिका में महँगाई बढ़ने से कंपनियाँ नए आईटी कॉन्ट्रैक्ट साइन करने में देरी कर रही हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निवेश बढ़ा रही हैं, जिससे भारतीय आईटी मैनपावर की मांग घट सकती है।
क्या आईटी सेक्टर पर होगा सीधा वार?
अमेरिका में कुछ नीति-निर्माताओं की तरफ़ से आईटी सेक्टर पर सीधे हमले की चर्चाएँ हो रही हैं। प्रस्तावों में शामिल हैं:
आउटसोर्सिंग टैक्स: अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारत को दिए जाने वाले आईटी कॉन्ट्रैक्ट्स पर शुल्क।
वीज़ा प्रतिबंध: एच-1बी वीज़ा पर सख्ती, जिससे भारतीय इंजीनियरों की नौकरियों पर असर होगा।
रेमिटेंस टैक्स: अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों द्वारा घर भेजी जाने वाली रकम पर टैक्स।
यह कदम ट्रम्प के वोट बैंक के लिए लोकप्रिय साबित हो सकता है क्योंकि अमेरिका में आउटसोर्सिंग को "जॉब चोरी" के रूप में देखा जाता है।
भारत की रणनीति और भविष्य की राह
भारतीय आईटी कंपनियाँ पहले से ही यूरोप, मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने मार्केट का विस्तार कर रही हैं। साथ ही जेनरेटिव एआई, क्लाउड और साइबर सिक्योरिटी में निवेश बढ़ाया जा रहा है ताकि वैश्विक स्तर पर उनकी अहमियत बनी रहे।
सितंबर 2025 तक आईटी सेक्टर पर सीधी पाबंदी लागू नहीं हुई है, लेकिन वीज़ा सख्ती और रेमिटेंस टैक्स जैसे कदम संभावित हैं। अगर अमेरिका ने आउटसोर्सिंग पर शुल्क लगाया, तो भारत के आईटी निर्यात पर गंभीर असर पड़ सकता है। दूसरी ओर, भारत कूटनीतिक स्तर पर समझौते की कोशिश कर सकता है — जैसे रूसी तेल आयात कम करके अमेरिका को संतुष्ट करना।
👉 सवाल यही है: क्या भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्ते नए संतुलन की ओर बढ़ेंगे या ट्रम्प की ट्रेड वॉर का अगला निशाना भारत का आईटी सेक्टर बनेगा?
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